Saturday, July 21, 2012

बुद्ध का जीवन-1

सिद्धार्थ गौतम का जन्म आज के नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ था. उनके पिता राजा सुद्दोधन शाक्यवंशी थे और कपिलवस्तु के राजा थे.. इसी वंश में भगवान राम का भी जन्म हुआ था लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है की सूर्यवंशी गौतम कोई दिव्या आत्मा थे और उन की पूजा की जाये. एक दिन रानी महामाया ने यह स्वप्न देखा की तीन दन्त वाला एक उजला हांथी आसमान से उतरकर उनके गर्भ में प्रवेश कर गया. अचानक ही उनकी नींद खुल गयी और उन्होंने असीम शांति का अनुभव किया. कुछ ही दिनों बाद यह खबर आई की रानी गर्भवती हो गयी हैं और महाराज की खुशी का कोई ठिकाना न रहा. उन दिनों के रिवाजों के अनुसार गर्भवती महिला को प्रसव के लिए अपने मायके लौटना पड़ता था. रानी महामाया भी हिमालय की घाटियों से होते अपने मायके की ओर लौट चलीं किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था. बिच रस्ते में ही एक शाल के वृक्ष के निचे राजकुमार का जन्म हो गया. जिस व्यक्ति को आलीशान महल में पैदा होना था उसे प्रकृति ने अपने बिच एक वृक्ष के निचे ही बुला लिया.राजकुमार के जन्म होते ही मंद हवाएं चलने लगीं और उनके ऊपर फूलों की बरसात होने लगी.रानी महामाया वापस कपिलवस्तु लौट आयीं लेकिन अगले सात दिनों के बाद ही उनकी बिना किसी पीड़ा के मृत्यु हो गयी.


महाराज को बहुत दिनों से एक पुत्र की इच्छा थी और राजकुमार ने उनके इस अर्थ को सिद्ध कर दिया,पूर्ण कर दिया इसीलिए उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया और कुल के नाम पर पूरा नाम हुआ सिद्धार्थ गौतम. पुरे राज्य में खुशी की लहर दौड गयी और दूर दूर से साधू महात्मा बच्चे का भविष्य बताने के लिए आने लगे.जिसने भी देखा उसने यही बताया की यह बच्चा या तो एक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या एक बहुत ही महान अध्यात्मिक गुरु. ऐसे ही एक दिन महाराज ने देखा की एक दिव्य पुरुष असिता दौड़े चले आ रहे हैं. वह बहुत ही बड़े साधू थे और उन्हें किसी चीज का मोह नहीं था इसलिए महाराज उनकी बड़ी इज्ज़त करते थे. महाराज उन्हें बच्चे को दिखाने ले गए तो सिद्धार्थ ने उनकी जटाओं में अपना पैर उलझा लिया. यह देखकर संत रोने लगे जिससे महाराज को बहुत ही आश्चर्य हुआ. कारन पूछने पर दिव्य पुरुष ने बताया की बालक में एक महान पुरुष बनने के सभी अट्ठारह लक्षण मौजूद हैं और इसीलिए वह एक बहुत बड़ा अध्यात्मिक शिक्षक बनेगा. वह जीवन और निर्वाण के बिच अलग रास्तों का निर्माण करेगा और मनुष्यों के साथ साथ सभी देवता भी उसे सुनने को लालायित रहेंगे. हे राजन! मैं इसीलिए रो रहा हूँ की मैं ऐसे महान पुरुष को सुनने के लिए जीवित नहीं रहूँगा. मेरी उम्र काफी हो चुकी है.


गुरु असिता की बातें सुनकर महाराज को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने यह संकल्प लिया की चाहे कुछ भी क्यूँ न हो, वह अपने बच्चे से इस सारे दुनिया का दुक्ख छुपकर ही रखेने ताकि उसका ध्यान इस ओर न जाये और वह एक बहुत ही बड़ा सम्राट बने.

आज के लिए बस इतना ही..बातें कल भी जारी रखेंगे की कैसे उन्होंने इस जीवन को सच्चे स्वरुप में देखा. यह एक बहुत ही सुन्दर घटना है जिसके बारे में आप सब जानते होंगे की कैसे चार दृश्यों ने उनके अज्ञान को चकनाचूर कर दिया.

Thursday, July 19, 2012

परिचय बुद्ध की शिक्षा से

इस ब्लॉग के माध्यम से हम जानने की कोशिश करेंगे उस सबसे बड़े शिक्षक के बारे में जिसने इस अस्त होते भारत को एक नयी ज्योति दिखाई और भारत को अपने ज्ञान के सहारे उस मुकाम तक ले गया जहाँ उसे सोने की चिड़िया का दर्जा दिया गया।


सिद्धार्थ गौतम नाम का वह व्यक्ति जिसने बोधी प्राप्त की और आगे चलकर बुद्ध के नाम से प्रसिद्द हुआ.आज से लगभग 2500 वर्ष पहले बुद्ध ने अपनी शिक्षा का प्रसार किया. उस समय का भारत धर्म की अंधी मान्यताओं की बेड़ियों में जकड़ा पड़ा था . बुद्ध ने अपनी शिक्षा से इसे ज्ञान का एक नया आयाम दिया. उनकी शिक्षा एक चक्रवात की तरह फैली जिसने पहले पुरे भारत और फिर पुरे एशिया को ही अपने रंग में रंग दिया। इसके 200 साल बाद चाणक्य और चन्द्रगुप्त का आगमन हुआ। फिर नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय खोले गए। ये सारे बुद्ध की ही शिक्षा देते थे । हर व्यक्ति इस बात को स्वीकार करेगा की यही भारत का स्वर्णिम युग था।


लोग अक्सर ही सोचते हैं की बुद्ध की शिक्षा ने एक संप्रदाय की स्थापना की. लेकिन ऐसा सोचना बिलकुल भी गलत है। बुद्ध सम्प्रदायवाद के खिलाफ थे। वे पूजा के खिलाफ थे, मूर्तियों के खिलाफ थे , किसी इश्वर की कृपा के खिलाफ थे। उनकी नज़रों में हर वह व्यक्ति जो पैदा हुआ बराबर था, जातपात से ऊपर. हर व्यक्ति के पास इतनी शक्ति है की वह अपना भला खुद कर सकता है,उसे किसी इश्वर के सामने गिडगिडाने की जरूरत नहीं है। मेरी नज़र में आज हर पढ़ा लिखा इंसान यही सोचता है।


आज बुद्ध की कई शिक्षाएं हमारे जीवन का इतना अभिन्न हिस्सा बन चुकी है की हम कभी सोचते ही नहीं की यह किसने दिया। कुछ असामाजिक लोगों के कारन और मुख्यतः हमारी अज्ञानता के कारन हमसे उनकी शिक्षा खो गयी. लगभग 700 सालों तक जलने के बाद दिया फिर बुझ गया. यह इसी क्षति का असर है की आज हम खुद बुद्ध को ही भगवान् का दर्ज़ा देकर उनकी पूजा करते हैं और मूर्तियाँ बनाते हैं. आज तो बुद्ध के नाम का एक संप्रदाय भी है। कितना हास्यास्पद लगता है।


आज हमें फिर से उस शिक्षा को पाने का अवसर प्राप्त हुआ है। इसे व्यर्थ न जाने दें। पहले हम बुद्ध के जीवन को समझने का प्रयास करेंगे फिर उनकी शिक्षाओं को। बहूत सारे भाई बहन यह सोच रहे होंगे की मैं बुद्ध के सम्प्रदायवाद का प्रचार कर रहा हूँ। लेकिन मैं यह कहना चाहूँगा की मैं ऐसा कतई नहीं करना चाहता. ज्ञान कभी संप्रदाय के बाड़े में नहीं बंधा होता. चाहे कोई हिन्दू हो या मुस्लिम हो या बोद्ध हो, ज्ञान हर किसी के लिए एक ही होता है। किसी व्यक्ति को बुद्ध की शिक्षा के लिए अपना धर्म नहीं बदलना होता। यदि हम धर्म ही बदलते रहेंगे तो शिक्षा के लिए समय कहाँ से मिलेगा. फिर भी यदि कोई भाई या बहन ऐसा सोचता हो की इस शिक्षा से उसके धर्म पर कोई असर पड़ता हो तो वह मेरे ब्लॉग को न पढ़े. मैं उसके विचारों का भी दिल से स्वागत करता हूँ।


जो इस शिक्षा को समझना चाहते हैं एवं आत्मबोध और आत्मसंतुष्टि से परिचय करना चाहते हैं उन्हें सबसे पहले इन तिन रत्नों की शरण जाना होगा। ऐसा करने के लिए आप इन तिन पंक्तियों को तिन तिन बार बोलकर दोहराएँ.
बुद्धं शरणम् गच्छामि
धम्मम शरणम् गच्छामि
संघम शरणम् गच्छामि।


मैं बुद्ध की शरण जाता हूँ लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं की मैं सिद्धार्थ गौतम के शरण जाता हूँ। बुद्ध ने यह साबित किया की हममे से हर व्यक्ति आत्मबोध प्राप्त कर सकता है क्यूंकि हर किसी के भीतर एक बोधी और एक बुद्ध छुपा है,जागृत होने की क्षमता छुपी है। मैं उसकी शरण जाता हूँ।
धम्म वह ज्ञान है जो हमें अपने बोधी को सिंचित कर एक बुद्ध बनने में मदद करता है। यह ज्ञान भी कहीं हमारे अपने ही भीतर छुपा है, मैं उसकी शरण जाता हूँ।
संघ वह समूह है जो हमें इस आत्मज्ञान के पथ पर मदद करता है। हम अपनी मदद स्वयं करते हैं। हर दो व्यक्ति भी मिलकर एक संघ का निर्माण करता है अर्थात संघ का यह रत्न हमारे भीतर ही छिपा है. मैं उसकी शरण जाता हूँ।


कुल मिलकर बुद्ध ने संक्षेप में कहा की अपनी ही शरण जाओ। अपने दीपक स्वयं बनो। मैं तुम्हे सिर्फ मार्ग बताकर उसपर चलने की कला बता सकता हूँ, चलना तो तुम्हे स्वयं ही पड़ेगा। अपने तारणहार सिर्फ तुम्ही हो, सिर्फ तुम.




आज के लिए बस इतना ही। कल मैं बुद्ध के जीवन की चर्चा शुरू करूँगा। आगे चलकर हम यह भी देखेंगे की कैसे जीवन और मृत्यु , मिलना और बिछड़ना, पाना और खोना सिर्फ काल्पनिक विचार हैं। आत्मा और इश्वर के अश्तित्व और उनके न होने के भाव को भी समझेंगे। मनुष्यों के स्वाभाव को समझेंगे एवं निर्वाण की प्राप्ति के लिए साधना आरंभ करने का प्रयास करेंगे. उत्साहवर्धन के लिए कृपया अपने विचार अवश्य व्यक्त करें.
मैं आप सभी से यह निवेदन करता हूँ की कृपया इस ज्ञान को इस ब्लॉग के माध्यम से फ़ैलाने में मेरी मदद करें। इसी ज्ञान में एक नया सवेरा छुपा है, एक नया उदय छुपा है, एक सबल राष्ट्र छुपा है।